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April 26, 2024

अब भगवान परशुराम नही, मुख्यमंत्री के आगमन से शुरु होता है मेला

News portals-सबकी खबर (संगड़ाह)

सतयुगी तीर्थ कहलाने वाले रेणुकाजी में सदियों से आयोजित होने वाले धार्मिक मेले पर प्रशासनिक अथवा विकास बोर्ड के नियंत्रण के बाद अब यहां प्राचीन परंपराएं व मौलिकता धीरे-धीरे दम तोड़ रही है।‌ 1982 मे रेणुकाजी विकास बोर्ड के गठन के बाद मेले के आयोजन का जिम्मा DC सिरमौर अथवा बोर्ड अध्यक्ष संभालते है और क्षेत्र की लोक संस्कृति व परंपराओं पर ध्यान देने की वजाय अधिकतर IAS अधिकारी अपने ढंग से इस धार्मिक आयोजन के आधुनिकीकरण का प्रयास करते आए है। Renukaji Board के संस्थापक सदस्य रहे सिरमौरी साहित्यकार आचार्य चंद्रमणि वशिष्ठ के बोर्ड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष के पद पर रहने के दौरान हालांकि परम्पराओं की कम अनदेखी होती थी, मगर 2009 मे उनके निधन के बाद बोर्ड के गैर सरकारी सदस्य अथवा सत्ताधारी नेताओं ने भी प्रशासन से आस्था व परम्पराओं का सम्मान करवाने की कोशिश संभवतः नही की। वर्ष 2011 मे जहां तत्कालीन Chief Minister प्रेम कुमार धूमल की घोषणा के मुताबिक जहां इस मेले को Internationel दर्जा मिला वहीं, वर्ष 2016 मे पूर्व प्रदेश कांग्रेस सरकार के कार्यकाल मे उपमंडल संगड़ाह अथवा रेणुकाजी क्षेत्र के इस मेले व ददाहू तहसील को नाहन सब-डिवीजन में शामिल किया गया।

80 व 1990 के दशक मे इस धार्मिक मेले का व्यापारीकरण अथवा दुकानों के लिए प्लॉट बेच कर हर साल ज्यादा कमाई करने पर प्रशासन ने फोकस किया और मेला मैदान मे डेरे अथवा टेंट लगाकर रहने वाले सिरमौर के गिरिपार व उत्तराखंड के जौनसार आदि इलाके के ग्रामीणों को यहां से खदेड़ने अथवा डेरे न लगने देने की कवायद भी शुरु हुई। मेला बाजार की दुकानों के लिए प्लॉट बेचे जाने लगे हर साल 70 लाख के करीब आमदनी प्रशासन द्वारा की जाती है और इस कमाई के चलते वर्ष 2010 तक डेरा व जातर परंपरा दम तोड़ गई। दो वर्ष पहले तक हालांकि परशुराम ताल के समीप यहां रात को सोने अथवा जागरण की परंपरा निभाने वाले ग्रामीणों के लिए बोर्ड पंडाल लगाता था, मगर मगर इस बार उक्त टेंट को वीआईपी अथवा बड़े लोगों द्वारा वाहनों की Parking के रूप में इस्तेमाल किया गया।

इतना ही नहीं इस मेले को प्रशासन द्वारा धार्मिक उत्सव की बजाय सांस्कृतिक व व्यापारिक मेले का रूप दिया गया और भगवान परशुराम से ज्यादा तवज्जो जिला प्रशासन द्वारा उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री व समापन में Governor को दी जाने लगी। आज के दौर में सरकारी Media तथा विज्ञापनों से प्रशासन के प्रचार प्रसार के चलते अधिकतर युवा यह समझते हैं कि, मेले का शुभारंभ मुख्यमंत्री करता है जबकि वास्तव में भगवान परशुराम के दशमि पर मां रेणुकाजी के मिलने आने पर यह मेला शुरू होता है।‌ इस बार भी मेले मे परंपराओं का ध्यान रखे जाने व मूलभुत सुविधाओं की कमी का असर मेला बाजार में खरीदारी कम होने के रूप मे दिखा। चार सौ के करीब दुकानदारों में से अधिकतर व्यापारी घाटे की बात कह रहे हैं।‌ व्यापारियों के अनुसार लोग भगवान परशुराम व मां रेणुका में श्रद्धा रखने वाले लोग बसों के अभाव मे अपनी अथवा किराए की गाड़ियों से यहां पहुंचते हैं और पूजा अर्चना के बाद बिना खरीदारी के लौट रहे हैं। HRTC द्वारा इस बार बाहरी डीपो से मेले के लिए एक भी बस नही लगाई गई, हालांकि संबंधित कर्मी मेले मे 26 बसें चलने की बात कह रहे हैं। मेले के शुभारंभ कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का तय समय से करीब डेढ़ घंटा देरी से सांय 3 बजे पहुंचना भी चर्चा में रहा और भगवान परशुराम की पालकियों को मुख्यमंत्री का इंतजार करना पड़ा। गौरतलब है कि, जिला प्रशासन द्वारा इस बार मेले में वॉलीबॉल व कबड्डी प्रतियोगिताएं करवाने का नया प्रयोग शुरू किया गया है जो कि, परंपरा का हिस्सा नहीं है।‌

मेला परम्परा का एक अहम हिस्सा पहाड़ी कवि सम्मेलन भी नही हुआ, जबकि आतिशबाजी की परम्परा समाप्त करने के लिए भी वैज्ञानिक तर्क दिए जाते हैं। COVID काल का हवाला देकर हालांकि, मेले की जान कहलाने वाली सांस्कृतिक संध्याएं नही करवाई गई मगर मुख्यमंत्री के कार्यक्रम व खेल-कूद प्रतियोगिताओं में भारी भीड़ जुटी और कोरोना प्रोटोकॉल की परवाह किसी ने नही की। गौरतलब है कि, पूर्व प्रदेश सरकार के कार्यकाल में जहां स्थानीय कांग्रेस विधायक को रेणुकाजी विकास बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, वहीं वर्तमान प्रदेश सरकार द्वारा फिर से उपायुक्त को रेणुकाजी विकास बोर्ड के अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई।‌ सात दिवसीय इस मेले मे संध्याओं का आयोजन न करने से करीब 40 लाख की बचत का अनुमान है। इस मेले मे न तो प्रदेश के अन्य अंतरराष्ट्रीय मेलों जितने सुरक्षा कर्मी तैनात है और न ही अन्य मूलभुत सुविधाएं मेलार्थियों के लिए उपलब्ध है।‌ स्थानीय Congress MLA एंव विकास बोर्ड सदस्य विनय कुमार मेले मे सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन न होने व परम्पराओं से छेड़छाड़ को लेकर प्रशासन व सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।‌ पंचायत समिति संगड़ाह के अध्यक्ष एवं रेणुकाजी बोर्ड के सदस्य मेलाराम शर्मा ने कहा कि, कोरोना प्रोटोकॉल को देखते हुए प्रदेश सरकार द्वारा दशहरा व शिवरात्रि जैसे अंतरराष्ट्रीय मेलों की तरह यहां भी सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन नही किया गया। उन्होने कहा की, कोरोना का खतरा टलने पर अगले साल और बेहतर ढंग से मेले का आयोजन होगा तथा रेणुकाजी बोर्ड परम्पराओं का सम्मान करने की पूरी कोशिश करता है।

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