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May 14, 2024

धर्मगुरु दलाई लामा है विश्व शांति दूत : सुरेश तोमर

अहिंसा व शांति के पथ पर चल कर देश की आजादी के लिए संघर्ष: दिनेश पुंडीर

– पांवटा के भूपपुर में धर्मगुरु दलाई लामा का 85वां जन्मदिन पूरे उत्साह के साथ मनाया


News portals-सबकी खबर(पांवटा साहिब)

कोरोना संकट के बीच 14वें बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा का 85वां जन्मदिन सादे समारोह में मनाया जाएगा। दलाईलामा सोमवार को 85 वर्ष के हो गए हैं। पांवटा के भूपपुर में धर्मगुरु दलाई लामा का 85वां जन्मदिन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में पांवटा प्रेस क्लब् के महासचिव सुरेश तोमर व वरिष्ठ पत्रकार दिनेश पुंडीर रहे। दीप प्रज्ज्वलित व केक काटकर धर्मगुरु दलाई लामा को उनके जन्मदिन पर बधाई दी। जन्मदिन समारोह के दौरान दलाई लामा की तस्वीर के दर्शन करके, धर्मगुरु के दीर्घायु होने की कामना की गई।

मुख्य अतिथि सुरेश तोमर व दिनेश पुंडीर ने कहा कि धर्मगुरु दलाई लामा ने शांतिपूर्वक तरीके से विश्व समुदाय के समक्ष तिब्बत की हक की हर बात रखी है। अहिंसा व शांति के पथ पर चल कर देश की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे हैं। चीन के तिब्बत पर जबरन कब्जे के बाद से निरंतर तिब्बती समुदाय आजादी को संघर्ष कर रहा है। शांति दूत के रूप में धर्मगुरु दलाई लामा ने विश्व भर में ख्याति पाई है। सन 1989 में जब उन्हें विश्व-शांति का ‘नोबेल पुरस्कार’ दिया गया, तो चीन भौंचक्का रह गया। उसे शायद यह पता नहीं था कि दलाई लामा को विश्व में कितने आदर के साथ देखा जाता है। दलाई लामा ‘लियोपोल्ड लूकस पुरस्कार’ से भी सम्मानित हो चुके हैं। धर्म गुरु व समस्त तिब्बती समुदाय के अपने देश की आजादी के लिए संघर्ष एक दिन जरूर रंग लाएंगे। परम पावन दलाई लामा के शांति संदेश, अहिंसा, अंतर धार्मिक मेल मिलाप, सार्वभौमिक उत्तरदायित्व और करुणा के विचारों को मान्यता के रूप में 1959 से अब तक उनको 60 मानद डॉक्टरेट, पुरस्कार, सम्मान आदि प्राप्त हुए हैं।

भूपपुर सेटलमेंट ऑफिसर गेलैक जमयांग व तिब्बती यूथ कांग्रेस भूपपुर अध्यक्ष कुंचोक सिरिंग ने कहा कि 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो का जन्म 6 जुलाई 1935 में तिब्बत के आमदो क्षेत्र के तक्तसर गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। इनका असली नाम ल्हामो दोंडुब है। जब वह 2 साल के थे, तब इन्हें 13वें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो का अवतार माना गया। फिर कुछ समय बाद ही उन्हें 14वां दलाई लामा घोषित कर दिया गया। महज 6 वर्ष की उम्र से ही दलाई लामा को मठ की शिक्षा दी जाने लगी थी। 14वें दलाई लामा के रूप में वह 29 मई 2011 तक तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष रहे थे। इस दिन उन्होंने अपनी सारी शक्तियां तिब्बत की सरकार को दे दी थी और अब वह सिर्फ तिब्बती धर्मगुरु हैं। वर्ष 1949 में चीन ने तिब्बत पर हमला किया और इस हमले के एक वर्ष बाद यानी वर्ष 1950 में दलाई लामा से तिब्बत की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए अनुरोध किया गया।


बता दे की 1959 में स्वतंत्रता के लिए उठी तिब्बत की मांग को 60 साल का वक्त बीत चुका है। उसी वक्त दलाई लामा भारत आ गए थे। चीन में शासक तो बदले, लेकिन दलाई लामा व तिब्बत को लेकर नजरिया नहीं बदला।
दलाई लामा तिब्बत की स्वतंत्रता के पैरोकार हैं और वह उनके देश की संप्रभुता को नवह तो तिब्बत क्षेत्र के लिए स्वायत्तता चाहते हैं, ताकि तिब्बतियों को चीन के शासन में उनकी सांस्कृतिक, भाषा और धर्म को बनाए रखने की आजादी मिल सके।

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