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May 18, 2024

नाटी गायकों के आगे रेणुकाजी मेले में फीके पड़े मुम्बईया व पंजाबी कलाकार

News portals -सबकी खबर (संगड़ाह) हिमाचली लोक संस्कृति की जान कही जाने वाली नाटी का सदियों पुराना आकर्षण व जादू आज भी कायम है। देश के विभिन्न हिस्सों में बेशक भारतीय परम्पराओं पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव लगातार बढ़ रहा हों, मगर पाश्चात्य संस्कृति हिमाचली नाटी लोक नृत्य का बाल भी बांका नही कर सकी। आधुनिक मीडिया, यूट्यूब, स्टेज शो, गिनीज रिकॉर्ड बुक व विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से वर्तमान दौर मे नाटी की गूंज न केवल हिमाचल बल्कि भारत व दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पहुंच चुकी है। नाटी न केवल बोली अथवा भाषाई विभिन्नता वाले हिमाचल प्रदेश को एक सूत्र में बांधती है, बल्कि साथ लगते उत्तराखंड व अन्य पड़ोसी राज्यों में भी नाटी सुनी अथवा देखी जाती है। सिरमौर जिला के एक मात्र अंतर्राष्ट्रीय मेला रेणुकाजी में गत वर्षों की तरह इस बार भी सभी सांस्कृतिक संध्याओं में दर्शकों का नाटी के प्रति आकर्षण बखूबी देखा गया तथा सैकड़ों मेलार्थी नाटी की प्रस्तुति के दौरान झूमते देखे गए। मेले में इस बार भी मुम्बईया अथवा बालीवुड तथा पंजाबी गायक सिरमौर व हिमाचल के नाटी लोक कलाकारों के मुकाबले फीके नजर आए। कुलदीप शर्मा, विक्की चौहान तथा दलीप सिरमौरी आदी ने जहां नाटियों से दर्शकों की वाहवाही लूटी वहीं सुजाता मजूमदार, रज़ा हीर व सोम चंद्रा आदि मुम्बईया, सूफी व पंजाबी गायक भी दर्शकों की फरमाइश पर हिमाचली गीत गाने पर मजबूर हुए। हिमाचल के सिरमौर, शिमला, कुल्लू, मंडी व सोलन आदि जिलों के पहाड़ी इलाकों मे शादी व अन्य समारोह में धीमी लय वाली पहाड़ी धुनों पर सदियों से होने वाला नृत्य-गायन नाटी के रूप में आज देश व दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुका है। वर्ष 2000 के बाद अपने आडियो कैसेट, स्टेज शो, वीडियो एलबम व यूट्यूब आदि के माध्यम से प्रदेश व देश भर मे नाम कमाने वाले हिमाचली कलाकार ठाकुर दास राठी, कुलदीप शर्मा, विक्की चौहान, कर्नेल राणा, एसी भारद्वाज, शारदा शर्मा, कृतिका, महेंद्र राठोर, दिनेश शर्मा व राजेश मलिक आदि की सफलता का राज उनके द्वारा गाए गए| नाटी गीत ही समझे जाते हैं। कुल्लू दशहरा मे 26 अक्टूबर 2015 को 9892 महिलाओं द्वारा पारंपरिक पोशाक में एक साथ की गई नाटी गिनीज रिकॉर्ड बुक में दर्ज होना हिमाचल के लिए गौरव का विषय है। सिरमौर जिला के राजगढ़ उपमंडल के लोक कलाकार एवं चुड़ेश्वर सांस्कृतिक दल के निदेशक विद्यानंद सरैक को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने से भी देवभूमि के सांस्कृतिक दलों के हौसले बुलंद हैं। हिमाचल के नाटी गायकों को अपने ही प्रदेश में पंजाबी व मुम्बईया व पंजाबी गायकों की वजाय उपेक्षित तथा छोटे समझा जाना, सरकारी कार्यक्रमों में इन्हें बाहरी कलाकारों से कई गुना कम मानदेय मिलना तथा बड़े हिमाचली कलाकारों द्वारा पारंपरिक पोशाक की बजाय अंग्रेजी पहनावे मे नाटी किया जाना हिमाचल की लोक संस्कृति व नाटी के लिए घातक समझा जाता है। हाल ही में मशहूर हिमाचली लोक गायक एसी भारद्वाज हिमाचल के प्रमुख मेले व उत्सवों में स्थानीय कलाकारों की अनदेखी का मुद्दा मीडिया में उठा चुके हैं। जर्मन, थाईलैंड, जापान, हंगरी, मिस्र, आयरलैंड व यूरोप तथा अफ्रीका के कई देशों में नाटी लोक नृत्य पेश कर चुके उपमण्डल संगड़ाह के बाऊनल व राजगढ़ के चुड़ेश्वर आदि सांस्कृतिक दल नाटी में फिल्मी रीमिक्स तथा कईं बड़े लोक कलाकारों द्वारा स्टेज शो मे कोट-पैंट अथवा जींस-शर्ट मे नाटी करने का कईं बार विरोध कर चुके हैं। बहरहाल पाश्चात्य सभ्यता के बढ़ते प्रभाव के बावजूद नाटी का आकर्षण बखूबी कायम है।

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