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April 29, 2024

एपीआई पर क्यूआर कोड डालना जरूरी, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी की अधिसूचना

News portals-सबकी खबर (सोलन )

केंद्रीय स्वास्थय मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार पहली जनवरी, 2023 से एपीआई पर क्यूआर कोड डालना अनिवार्य होगा। इस कवायद से असली और नकली दवाओं की पहचान करना आसान होगा, इसके अलावा क्यूआर कोड में निर्माता और बैच नंबर की जानकारी होगी साथ ही उत्पाद की एक्सपायरी और आयातक की जानकारी भी मिलेगी।

केंद्र सरकार ने दवाओं में इस्तेमाल होने वाले एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (एपीआई) पर क्यूआर कोड डालना अनिवार्य कर दिया है। क्यूआर कोड लगाने से असली और नकली दवाओं की पहचान में आसानी होगी। साथ ही, इससे दवा बनाने वाली कंपनी को ट्रैक करना आसान होगा।

गोरतलब हो कि क्यूआर कोड से जहां फार्मास्युटिकल फर्म का पता लगाना आसान होगा, वहीं यह जानकारी हासिल करना भी आसान हो जाएगा कि दवा के फॉर्मूले के साथ क्या कोई छेड़छाड़ की गई है या नही। इसके अलावा उत्पाद कहां से आया और कहां जा रहा है, इसे भी टै्रक किया जा सकेगा। काबिलेजिक्र है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय अरसे से दवा उद्योग को गुणवत्तापूर्ण एपीआई की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बार कोडिंग को अनिवार्य करने की कवायद में जुटा हुआ था, विभिन्न दवा संगठन भी इस संर्दभ में मांग उठा रहे थे, क्योंकि अक्सर सामने आया है कि नकली और कम गुणवत्ता वाले एपीआई से तैयार की जाने वाली दवाएं वास्तव में मरीजों को फायदा नहीं पहुंचाती हैं। इसी के मददेनजर ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने जून 2019 में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।

कई रिपोट्र्स में दावा किया जा चुका है कि देश में तीन प्रतिशत दवाएं घटिया गुणवत्ता की हैं। इसी कड़ी में सरकार वर्ष 2011 से इस व्यवस्था को लागू करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन विभिन्न कारणों से इस पर कोई ठोस फैसला नहीं हो पा रहा था। दरअसल उस दौरान फार्मा कंपनियां इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित थीं कि अलग-अलग सरकारी विभाग अलग-अलग गाइडलाइंस जारी न कर दें। फार्मा कंपनियों की ओर से मांग थी कि पूरे देश में एक समान क्यूआर कोड लागू किया जाए, जिसके बाद वर्ष 2019 में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने यह मसौदा तैयार किया। किसी भी दवाई के बनने में एपीआई की मुख्य भूमिका होती है और इसी एपीआई के लिए फार्मा हब कहे जाने वाले हिमाचल सहित तमाम भारतीय कंपनियां बहुत हद तक चीन पर निर्भर हैं। मौजूदा समय में 70 प्रतिशत से ज्यादा एपीआई चीन से मंगवाया जाता है। कई मर्तबा दवा निर्माता आवाज बुलंद कर चुके हैं कि चीन से बिना रोकटोक घटिया गुणवत्ता और मिलावटी श्रेणी का एपीआई आयात हो रहा है।

 

 

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