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September 21, 2024

Himachal-सालों से चली आ रही पेयजल समस्या का हल नहीं हुआ तो लोग गांव छोड़कर चले गए

News portals-सबकी खबर ( भरमौर ) हिमाचल प्रदेश के भरमौर में एक गँवा में सालों से चली आ रही पेयजल समस्या का हल नहीं हुआ तो लोग गांव छोड़कर चले गए। अब गांव में महज 2 से तीन परिवार ही बचे हैं। गांव अब वीरान हो गया है। बता दें कि समुद्रतल से 8 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित भरमौर के महौण गांव में 68 वर्षो से चली आ रही पेयजल किल्लत बनी हुईथी जिसके कारण लोगो ने गाँव कि ही छोड़ दिया है । हैरानी की बात है कि जलशक्ति महकमे ने 16 लाख 17 हजार रुपये खर्च कर गांव के लिए पेयजल लाइनें बिछाईं और भंडारण टैंक बनवाया। लेकिन, पेयजल लाइन हर साल बारिश में बहती चली गईं। इसका खुलासा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत ली गई जानकारी में हुआ है। गाँव  के मोती राम शर्मा, धर्म चंद, हांडू राम और तिलक राज ने बताया कि महौण गांव में पिछले 68 वर्षो से पेयजल किल्लत का सामना लोगों को करना पड़ रहा है।वर्ष 1955 में भारी वर्षा के कारण गांव का जलस्रोत भूस्खलन की चपेट में आ गया। इससे गांव में जलसंकट पैदा हो गया। स्थानीय पंचायत और जलशक्ति विभाग की ओर से वैकल्पिक स्थान से पानी की आपूर्ति के प्रयास किए गए। लेकिन, गांव के आसपास पानी का अन्य स्रोत न मिलने के कारण ग्रामीणों को पानी के संकट से निजात नहीं मिल सकी। मजबूर होकर ग्रामीण धीरे-धीरे कर अपने घरों और जमीन को त्याग कर अन्य स्थानों पर बस गए। वर्तमान में पूरा गांव वीरान हो चुका है। बताया कि क्षेत्र की 15 बीघा जमीन जो मोटे अनाज और आलू की खेती के लिए जानी जाती रही। अब वहां पर झाड़ियां और जंगल हैं। विभाग का ढुलमुल रवैया भी गांव के उजड़ने का कारण है।

बताया जा रहा है कि आरटीआई में यह खुलासा हुआ कि वर्ष 2007 में गांव से पांच किमी दूर से पानी लाने के लिए ठेकेदार को ठेका दिया गया। वर्ष 2010 में ये कार्य पूरा हुआ। इस पर 16 लाख 17 हजार रुपये व्यय हुए। वर्ष 2012 में 2350 मीटर पाइपलाइन बरसात में और शेष 1157 मीटर वर्ष 2013 में बह गई। इस तरह प्रति वर्ष पानी के पाइप बह गए और लोग पानी को तरसते रहे। उन्होंने जिला प्रशासन से मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग उठाई है।उधर ,हड़सर पंचायत प्रधान रजनी शर्मा ने बताया कि विभाग की ओर से योजनाएं तो बनाई गईं पर धरातल पर नहीं उतर पाई हैं। यही कारण है कि अब गांव में महज दो से तीन ही परिवार शेष बचे हुए हैं।

 

 

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