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May 7, 2024

2022 के विधानसभा चुनावों के लिए मिशन रिपीट पर भाजपा का मंथन

प्रदेश में  दिन-प्रतिदिन रिकार्ड तोड़ती महंगाई और बेरोजगारी के इस दौर में वोटरों को जागृत करना भाजपा के समक्ष बड़ी चुनौती होगी।

News portals-सबकी खबर (शिमला )

हिमाचल प्रदेश में कोरोना काल के बाद अचानक आसमान छूती महंगाई, डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस तेल की कीमतों में इजाफा, हद पार करती खाद्य पदार्थों की कीमतें और कोविड के बाद बेरोजगारी जैसे बने हालात के बीच बुधवार को भाजपा ने धर्मशाला में मिशन रिपीट के लिए हुंकार भर दी। इसके लिए भाजपा प्रदेश संगठन सहित सरकार के भी तमाम नेता व कार्यकर्ता दिनभर अलग-अलग सत्रों में मंथन करते रहे।

प्रदेश भर के पार्टी पदाधिकारियों को नगर निगम चुनाव और फतेहपुर में होने वाले उपचुनाव के जरिए वर्ष, 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए तैयार करने को भाजपा ने काम शुरू किया है। इसके लिए गुरुवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी यहां पहुंचकर कार्यकर्ताओं में जोश भरेंगे। भाजपा बंद कमरे में पार्टी कार्यकर्ताओं को तो प्रशिक्षित कर देगी, लेकिन दिन-प्रतिदिन रिकार्ड तोड़ती महंगाई और बेरोजगारी के इस दौर में वोटरों को जागृत करना भाजपा के समक्ष बड़ी चुनौती होगी।

पेट्रोल, डीजल व गैस सहित तमाम खाद्य पदार्थों के दामों में लगातार हो रहे इजाफे के बाद लोगों में सरकार के प्रति और रोष बढ़ने लगा है। ऐसे में संगठनात्मक ढांचे को भाजपा मजबूत कर भी लेगी, लेकिन वोटरों के बीच में खड़े होना भाजपा के लिए आने वाले दिनों में बड़ी चुनौती होगी। साथ ही किरायों में बढ़ती नाराजगी भाजपा के भविष्य के लिए कितना सुखद होगी, इसका ट्रेलर बुधवार को पंजाब से आए स्थानीय निकाय चुनाव परिणाम ने दिखा दिया है।

कभी सत्ता की चाबी अकाली दल के साथ अपने हाथ में लिए भाजपा वहां इस बार कई जिलों में अपना खाता खोलने में भी असफल रही है। पड़ोस के सत्ता परिणामों का असर हिमाचल की राजनीति पर हमेशा पड़ता आया है, इसलिए इस बार कोई नई परंपरा बन जाए, बहुत मुश्किल है। यही वजह है कि पार्टी ने अपने पक्ष में  कांग्रेस की ओर से बनाए जाने वाले माहौल को डिफेंड करने के लिए पहले ही कार्यकर्ताओं को ट्रेंड करना शुरू कर दिया है। बुधवार को बाकायदा प्रदेश भर के पदाधिकारियों का ट्रेनिंग कैंप लगाया गया और इसके बाद हिमाचल में चार संसदीय क्षेत्रों पर ट्रेनिंग कैंप लगाए जाएंगे, ताकि बूथ स्तर तक बदले हालात से बचने के लिए कार्यकर्ता खड़े हो सकें।

संसदीय क्षेत्र के बाद मंडल स्तर पर कार्यकर्ताओं को ऐसे हालात से निपटते हुए फिर से सत्ता हासिल करने के लिए तैयार किया जाएगा। उधर, विपक्षी दल कांग्रेस महंगाई और तेल की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि के बाद सड़कों पर उतर कर सत्ताधारी दल के खिलाफ माहौल बनाने में जुट गई है। ऐसे में बंद कमरे में होने वाले भाजपा के प्रयास कितने सार्थक सिद्ध होते हैं, यह नगर निगम चुनावों के बाद ही पता चलेगा।

प्रदेशवासियों में बढ़ते असंतोष को कैसे तोड़ेगा कार्यकर्ता

आम नागरिक सीधे तौर पर अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने वाले उत्पादों की कीमत और उनकी उपलब्धता को सरकार की परफार्मेंस का पैमाना मानता है। मोदी सरकार की दूसरी पारी आम आदमी विशेषकर मध्य वर्ग पर भारी पड़ी है। प्रदेश सरकार जहां खुद को आयोजनों से जोड़कर आगे बढ़ रही है, जबकि नागरिक या वोटर डीजल-पेट्रोल, खाद्य पदार्थों की कीमतें, अधिकारियों-कर्मचारियों का व्यवहार, सड़क-रास्तों की स्थिति से सरकार को कोस रहे हैं। कार्यकर्ता इस नाराजगी को कैसे दूर करेगा, देखना बेहद रोचक होगा।

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